Wheat Crop : सौराष्ट्र क्षेत्र में इस बार गेहूं की फसल पर रोग का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को सतर्क रहने और सही उपाय अपनाने की सलाह दी है, ताकि फसल को बचाया जा सके और उत्पादन को बढ़ाया जा सके। उनका कहना है कि समय रहते उचित रोग नियंत्रण के माध्यम से ही बेहतर पैदावार सुनिश्चित की जा सकती है।
सौराष्ट्र के अधिकांश हिस्सों में रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं है। हर साल किसान बड़े पैमाने पर गेहूं की बुवाई करते हैं, जिससे उन्हें बेहतर पैदावार की उम्मीद रहती है। हालांकि, अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए इसकी सही देखभाल और रोग नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना बहुत जरूरी है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर रोग नियंत्रण को नजरअंदाज किया गया, तो फसल की पैदावार में भारी गिरावट आ सकती है। इसलिए, किसानों को सही समय पर फसल का निरीक्षण करना और रोगों से बचाव के लिए आवश्यक उपाय अपनाना चाहिए। Wheat Crop
गेरू रोग का खतरा
इस साल किसानों ने बड़ी उम्मीदों के साथ गेहूं की बुआई की थी, लेकिन गेरू नामक बीमारी ने उनकी मेहनत पर पानी फेरने जैसा संकट खड़ा कर दिया। गेरू बीमारी, जिसे गेरूआ पत्ती झुलसा रोग भी कहा जाता है, मुख्य रूप से सर्दियों के अंत में जनवरी और फरवरी के महीनों में तेजी से फैलती है। यह बीमारी एक विशेष प्रकार के कवक (फंगस) के कारण होती है, जो गेहूं की पत्तियों और तनों पर नारंगी रंग के छोटे-छोटे उभरे हुए धब्बों के रूप में दिखाई देती है।
समस्या तब और गंभीर हो जाती है, जब इन नारंगी धब्बों का आकार बढ़ने लगता है। धीरे-धीरे ये धब्बे पौधों को कमजोर बना देते हैं। पौधों की पत्तियां झुलसने लगती हैं और उनका फोटोसिंथेसिस करने की क्षमता कम हो जाती है। इसका सीधा असर फसल की पैदावार पर पड़ता है, जिससे किसानों की मेहनत और लागत पर पानी फिर जाता है।
किसानों के लिए यह बीमारी चिंता का विषय बनी हुई है क्योंकि गेरू बीमारी का सही समय पर उपचार न किया जाए तो पूरी फसल को बर्बाद होने से कोई नहीं रोक सकता। इस बीमारी से बचाव के लिए कृषि वैज्ञानिक और विशेषज्ञों की सलाह लेना बेहद जरूरी है। उचित कीटनाशकों और कवकनाशकों का उपयोग, साथ ही समय पर फसल की देखभाल, इस संकट से बचने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
तना गेरू की समस्या-Wheat Crop
गेहूं की फसल में तना गेरू एक गंभीर समस्या है, जो आमतौर पर फसल के बाद के चरणों में दिखाई देती है। यह रोग मुख्य रूप से तनों, पत्तियों और कंदों पर भूरे रंग की कवक वृद्धि के रूप में उभरता है। जब यह संक्रमण बढ़ता है, तो पौधे की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है और उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिलती है।
तना गेरू से प्रभावित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनकी पत्तियां धीरे-धीरे मुरझाने लगती हैं। इसके परिणामस्वरूप फसल का पोषण तंत्र प्रभावित होता है और अनाज का आकार और वजन भी कम हो सकता है। यह रोग न केवल उत्पादन को प्रभावित करता है, बल्कि किसान की मेहनत और आर्थिक लाभ को भी नुकसान पहुंचाता है।
गेरू रोग पर नियंत्रण के उपाय
गेरू रोग (रस्ट डिजीज) फसलों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन समय पर सही उपाय अपनाकर इससे बचा जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस समस्या के समाधान के लिए रासायनिक दवाओं का उपयोग करना एक प्रभावी तरीका है।
गेरू रोग से बचाव के लिए छिड़काव का तरीका
दवा की तैयारी:
- मैंकोजेब 75 डब्ल्यू.पी.ए. (Mancozeb 75 WP):
- 10 लीटर पानी में 27 ग्राम मैंकोजेब मिलाएं।
- प्रोपिकोनाज़ोल 25 सी (Propiconazole 25 EC):
- 10 मिली प्रोपिकोनाज़ोल को 10 लीटर पानी में घोलकर तैयार करें।
छिड़काव की प्रक्रिया:
- फसलों पर इस तैयार घोल का समान रूप से छिड़काव करें।
- छिड़काव करते समय यह सुनिश्चित करें कि पत्तों के सभी हिस्से दवा से ढके हों।
दूसरे छिड़काव की आवश्यकता:
- यदि आवश्यक हो, तो पहले छिड़काव के 15 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।
- यह सुनिश्चित करेगा कि रोग पूरी तरह से नियंत्रित हो।
अन्य उपचार और सावधानियां
फसल की बेहतर निगरानी करते हुए, जैसे ही गेरू रोग के शुरुआती लक्षण दिखाई दें, तुरंत जिंक सल्फेट का छिड़काव करना चाहिए। यह रोग को फैलने से रोकने में सहायक होता है। यदि खेत में दीमक की समस्या हो, तो फ्रिपरोनिल या क्लोरपाइरीफॉस का उपयोग करें। इसे 100 किलोग्राम रेत में अच्छी तरह मिलाएं और प्रभावित क्षेत्रों में छिड़काव करें।
कृषि विशेषज्ञों की सलाह
किसानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने नजदीकी कृषि केंद्रों से संपर्क करके सही दवाओं और उनके उपयोग की पूरी जानकारी प्राप्त करें। यह जानकारी विशेषज्ञों द्वारा दी जाती है, जो विभिन्न फसलों में होने वाले रोगों और उनकी रोकथाम के तरीकों पर आधारित होती है। दवा का छिड़काव करते समय विशेषज्ञों की सिफारिशों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सही समय, सही मात्रा और सही विधि से दवाओं का उपयोग करने से न केवल फसल रोगों पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है, बल्कि इससे फसल की पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है। याद रखें, बिना जानकारी के दवाओं का छिड़काव करने से फसल को नुकसान हो सकता है और पैदावार में गिरावट आ सकती है। इसलिए, किसानों को चाहिए कि वे कृषि केंद्रों पर जाकर परामर्श लें और सटीक जानकारी के आधार पर दवा का उपयोग करें।
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